प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 37)
माइंस से बचते हुए, उसके पास से गुजरते हुए दोनों तेजी से बेनोग पर्वत की दिशा में बढ़ रहे थे। हालांकि अंधेरा काफी गहरा था मगर आशा काफी सैड नजर आ रही थी, हालांकि यह स्पष्ट हो गया था कि जो भी हुआ उसमें आशा की कोई गलती नहीं थी अगर शायद अब भी जैसे खुद को ही कोस रही थी। अनि तेज कदमों से चलते हुए बार बार उसके चेहरे को देखकर अजीब सा रिएक्शन दिए जा रहा था।
"ऐसे मुँह मत लटकाओ निराशा जी! किसी महाज्ञानी यानी अनि ने कहा है कि मुँह लटकाने से गर्दन लटक जाती है जिससे गर्दन के जिराफ़ जितनी छोटी होने की भूरी भूरी शंका होती है।" अनि कमर टेड़ी कर उसके लटके हुए चेहरे को देखता हुआ बोला।
"अनि! ये टाइम बकवास का नहीं है। समझ नहीं आता कि एक बन्दा जो एक मिनट पहले इतना सीरियस हो वो फिर से बकवास कैसे करने लग सकता है।" आशा ने झुँझलाते हुए कहा।
"कुछ चीजें तो हमें भी समझ नहीं आती एजेंट शॉ!" अनि ने अपनी भौंहे सिकोड़ते हुए गंभीर भाव से कहा।
"क्या?" आशा की आंखे आश्चर्य से फैलती चली गयी।
"अनजान मत बनो एजेंट शॉ! तुम पहले से जानती थी कि एजेंट अनि ही अनिरुद्ध है, इसलिए तुमने ये बेवकूफी करनी शुरू कर दी। मगर मुझे शुरू से काफी कुछ झूठ बताया गया, अब टाइम है कि तुम सब सच बताओ!" अनि ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।
"अनि!" आशा उसे घूरती रही, अनि उसके और करीब होता चला गया। "दूर हटो मुझसे, ये बात करने का सही समय नहीं है।" आशा ने उसे धक्का देते हुए कहा, अनि पास की चट्टान से टकराते टकराते बचा, चारों ओर घना अंधकार फैला हुआ था, मगर बुलैरिश आर्मी कहीं दूर दूर तक नजर न आ रही थी।
"यही सही समय है! तुम्हें बताना ही होगा।" अनि जिस चट्टान से टकराने वाला था, उसी पर मेंढक की भांति फुदककर उकड़ू बैठ गया।
"उफ्फ्फ! ये किसी लड़का को समझ नहीं आने वाला, हर जगह नौटंकी करते रहता है, अब सीरियस प्रॉब्लम है तो फिर ऐसी नौटंकी।" आशा ने झुंझलाकर अपने बाल खींचते हुए कहा।
"इस लड़के को ना समझना ही बेहतर है निराशा जी, और उससे भी बेहतर है कि आप हमें निराश न करें।" चट्टान से छलांग लगाकर उतरते हुए अनि ने सीधे शब्दों में कहा।
"तो सुनो! बात करीब दो तीन साल पहले की है, मसूरी और देहरादून के आसपास कुछ विशेष ट्रक्स का आवागमन बढ़ गया था, जिसपर पुलिस ने तो ध्यान नहीं दिया मगर उनकी अचानक बढ़ी गतिविधियों ने सीक्रेट वारियर्स एजेंसी को दाल में कुछ काला होने की पूर्वसूचना देने लगा। जिसके आधार पर यहाँ कुछ एजेंट्स तैनात किए गए, मगर ये सब इतना गुप्त तरीके से चल रहा था कि महीने भर बाद ही सीक्रेट वारियर्स भी इनकी ओर से निश्चिंत हो लिए।
मगर जब कुछ दिन पहले फिर से वैसे ही ट्रक्स का आवागमन बढ़ गया जिसके साथ ब्लास्ट हुए एक ट्रक में करोड़ो के अत्याधुनिक हथियार और बारूद के सैंपल भी मिलें। मैं उस टीम की इंचार्ज थी, मगर मुझे छुपकर ही काम करने की इजाजत दी गयी थी इसलिए उन सारी घटनाओं के पीछे कौन है ये पता लगा पाना मुश्किल था। मगर मैंने कोशिश जारी रखी पर कुछ हाथ न लगा, तभी बच्चों के किडनैपिंग की घटना घटने लगी। तब चीफ ने तुम्हें यहां भेजने का फैसला लिया, मगर मैं ये समझ चुकी थी कि सारा खेल बस बच्चों के किडनैप का नहीं है बल्कि कोई गहरी साजिश हो सकती है, जिसके बाद तुम्हारे बाद वाली फ्लाइट से मैं भी मसूरी ही आ गई, मगर मेरे पास तुम्हारी तरह घूमने का वक़्त नहीं था मुझें ढूंढना था…"
"क्या? सीधे मुद्दे पर आओ!" अनि ने उसका रास्ता काटकर बीच में टोकते हुए कहा।
"उनका मकसद! क्योंकि ये सब किसी एक व्यक्ति का किया हुआ नहीं हो सकता था।" आशा ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा। "मैंने पास के सारे जंगल खंगाल डाले मगर मुझें सबूत मिला यहां, मैंने ट्रक के बहुत हल्के निशान देखें, जिसे मिटाने की पूरी कोशिश की गई थी या कुछ ऐसा किया गया था जिससे निशान बन ही नहीं रहे हों, वो एक पहाड़ी तक जाकर खत्म हो जाया करते थे, वहीं मुझे उस अजीब भाषा में लिखी किताब का वो पन्ना मिला! चीफ मुझे रिटर्न बुला चुका था मगर जब मैंने उसे सुबूत दिखाए तो मुझे फिर से मौका मिल गया। मगर अब की बार जो मैंने देखा वो देखकर मैं हैरान रह गयी थी.!" आशा की बिल्लौरी आँखे चमक से भर गई थीं।
"क्या?" अनि का मुँह खुला का खुला रह गया, उसके पांव वही के वही जमकर रह गए। "हे बजरंगबली! ये कैसे संभव है।"
उनके सामने पहाड़ी का विशाल ढलान था, जो पूरी तरह से चट्टान से निर्मित नजर आ रही थी। जिसका एक बड़ा टुकड़ा तेजी से एक ओर सरकता जा रहा था, अंदर से तीव्र प्रकाश आ रहा था, जिसमें अनि और आशा पूरी तरह नहा गए थे। ऐसा लग रहा था मानो पहाड़ के भीतर एक अलग नई दुनिया बसी हुई थी। आशा के चेहरे पर आश्चर्य के भाव नहीं थे मगर वहीं अनि यह देखकर काफी हैरान था, उसका मुंह खुला का खुला रह गया था।
"ओए मिस्टर! मुंह बन्द करो वरना मक्खी घुस जाएगी।" आशा ने उसके मुंह के सामने हाथ को लहराते हुए कहा।
"अं.. ह हां!" कहते हुए अनि ने अपना मुंह बंद किया। अब तक चट्टान पूरी तरह सरक चुकी थी। उनकी आंखो के सामने एक विशालकाय हॉल था, जहां अनेकों हथियारबंद नकाबपोश तैनात खड़े थे। हॉल से हल्की नीली गुलाबी मिश्रित प्रकाश बाहर को आ रहा था जो वहां के अंधकारमय वातावरण में थोड़ा प्रकाश भर रहा था।
"ये क्या है?" अनि अभी भी काफी हैरान नजर आ रहा था।
"अपने झूठे एक्सप्रेशंस छिपा लो विरुद्ध जी! अब आप इन सबसे अनजान न बनिए।" आशा ने तल्ख लहज़े में कहा, अब तक दोनो एक बड़ी चट्टान के पीछे छिप चुके थे।
"आराम से, जरा धीरे बोलो, अगर खाली स्थान भैया सुन लिए न तो अपनी बहन को डोली में बिठाकर हमारे साथ विदा करने के बजाए हमें चार कंधो पर शमशान भिजवा देंगे!" अनि ने होंठो पर उंगली रखकर उसे चुप होने का इशारा करता हुआ बोला।
"अनि!" आशा भन्नाई। गुस्से के मारे उसका सुर्ख लाल हुआ चेहरा दमकने लगा।
"विरुद्ध जी ही कहो! वैसे भी हम एक दूसरे के विरुद्ध हैं।" अनि ने मुंह बनाया।
"क्या मतलब?" आशा चिन्हुकी, एक पल को उसे विचार आया कहीं ये ब्लैंक से मिला हुआ तो नहीं है दूसरे ही पल वो ख्याल कोसों दूर निकल गया।
"मतलब हमारे मुक्कलात, ख्यालात, ख्यालात…!" अनि ने इठलाते हुए कहा।
"चुप हो जाओ अनि! ये कैसी बेवकूफी है। अगर ऐसा करोगे तो वे लोग हमें देख लेंगे।" आशा ने धीमे स्वर में कहा।
"तो देखने दो हमारी बला से, अब ज्यादा बचा भी क्या है उनको करने को, यही कर लेने दो!" अनि ने अपने चेहरे पर शैतानी मुस्कान लाते हुए कहा।
"व्हाट?" आशा को उसका टोन कुछ बदला बदला सा लगा।
"कुछ नहीं, उधर देखो!" अनि ने बात टालते हुए एक ओर इशारा करते हुए बोला, जहां आठ दस नकाबपोश आते हुए दिख रहे थे, उनके हाथ में एक छः फूटा बेहोश व्यक्ति था, जिसका चेहरा नीचे की ओर लटका हुआ था, अंधेरा अधिक होने के कारण वह स्पष्टतया नहीं दिखाई दे रहा था।
"ये कौन आ गया बलि का बकरा बनने!" अनि ने मुंह बिचकाया। वे लोग दूसरी दिशा में मुड़ते हुए दरवाजे के पास पहुंचे, उस शख्स का चेहरा देखते ही अनि को अपनी आंखो पर यकीन नहीं हुआ। वह अरुण था, उसका जिस्म कई जगहों से कटा फटा पड़ा था, बेहोश शरीर उन नकाबपोशों के हाथो में झूल रहा था।
"ल्यों बर्बादी भैया, यही तो नहीं करना था। सब बर्बाद कर दिया आपने!" भाव गंभीर नजरों से उसकी ओर देखते हुए अनि ने कहा।
"ये ब्लैंक कोई मामूली चीज नहीं है अनि! इसके पास पहले से अरबों डॉलर्स हैं, अगर ये कोई रिचुअल कर रहा तो निश्चय ही इसका मकसद कुछ और होगा।" आशा ने अनि के पास आते हुए कहा।
"खाली स्थान भैया वाकई किसी भी चीज से खाली नहीं हैं! मगर इनका कुछ तो खाली है जो इन्हें भरना है।" अनि ने सोचते हुए कहा, उसकी आंखो में शैतानियत चमक रही थी।
"तो अब इसे कैसे रोका जाएगा?"
"जैसे रोका जाता है, इनको जो चाहिए उसे हासिल कर लेने दो।" अनि ने मुस्कुराते हुए कहा।
"व्हाट?" आशा का। मुंह खुला का खुला रह गया।
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पहाड़ के गर्भ में बना विशाल हॉल, जहां इस वक़्त अनेकों नकाबपोशों के साथ खुद ब्लैंक भी उपस्थित थे। हॉल की दीवार के ओर अरुण दीवार से चिपका हुआ बाँधा गया था तो दूसरी ओर मेघना लटकती हुई नजर आ रही थी, दोनों ही इस समय बेहोश नजर आ रहे थे। मेघना की आँखों के नीचे आंसू सूखकर पपड़ी बन चुके थे, उसके मुंह में कपड़ा ठूंसा गया था। हल्की कसमसाहट के साथ वो जाग रही थी मगर अरुण अब भी बेहोश था। पूरे हॉल में ब्लैंक और उसके नकाबपोशों की हंसी गूंज रही थी।
"उठ जा पुलिसवाले! हाहाहा…!" अरुण को जोरदार लात मारते हुए ब्लैंक ने कहा। "देख आज मैंने वो हासिल कर ही लूंगा जो मुझे चाहिए! हाहाहा…! कोई इसे जगाओ रे…!"
मगर अरुण के बदन में कोई हलचल न हुई, वह बेड़ियों के बल पर झूलता हुआ नजर आ रहा था। उसके चेहरे और कंधे से खून बह रहा था, जिसे देखकर ब्लैंक की खुशी बढ़ती जा रही थी।
"तू बहुत अच्छा पुलिसवाला है रे, मेरा तुझसे कोई पंगा नहीं था मगर तूने बार बार उंगली घुसाए रखी, गलती कर गया बेटे! हर चीज गुस्से और ताक़त के दम पर नहीं होती, इसके लिए दिमाग चाहिए होता है दिमाग!" अपनी कनपटी को उंगली से दबाते हुए ब्लैंक ने कहा। मेघना उसे कातर निगाहों से देखे जा रही थी, मगर उसकी पलकें अधिक देर तक साथ नहीं दे पा रही थी, कुछ पलों बाद ही पलके फिर से मूंद गईं, कसमसाते हुए उसने अपनी आँखों को फिर खोला, बोलने की कोशिश की मगर नाकामयाब! उसे याद आया उसके मुँह में कपड़ा ठूंसा हुआ था।
"और तू भी अच्छी पुलिसवाली निकली रे! मगर मुझे जो चाहिए वो मैं हासिल करके रहता हूँ। जिसके लिए मैंने इसे ढूंढा है, इस नई दुनिया को, 'प्रेमम' को! अब बस आखिरी स्टेप, और फिर हमें सब हासिल होगा।" ब्लैंक ने रहस्यात्मक भाव से कहाँ।
"क्या?" अरुण ने जैसे नींद से जागते हुए कहा, किसी ने उसपर नमक मिला पानी डाल दिया था, खून पर नमकीन पानी गिरने से उसकी हालत बुरी हो गयी थी, उसने अपने जबड़े भींच लिए। "कौन सी दुनिया?" उसकी आंखें फटी की फटी रह गयी।
"प्रेमम!" नकाब के पीछे छिपे चेहरे पर गजब की रहस्यमय मुस्कान उभरी। "अब ज्यादा देर नहीं करते। चलो अब कार्यक्रम शुरू करें।" ब्लैंक के इतना कहते ही मेघना कि चेन्स ढीली कर उसे नीचे उतारा जाने लगा। सात आठ बलिष्ठ युवकों के बीच फंसी वह सिर्फ गूँ गूँ ही कर सकी, मगर छटपटाने के अलावा और कुछ कर पाना सम्भव न था। मेघना को चेन्स से बांधकर लकड़ी के मोटे तख्त पर लिटा दिया गया।
"रुक जा कमीने!" अरुण के गले से दर्द भरी चीख उबली, वह अपने सामने किसी मासूम को इस तरह मरते नहीं देख पा रहा था, मगर उसकी पूरी ताकत लगाने पर भी चेन्स को कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा था।
"जल्द ही तेरी भी बारी आएगी बच्चे! मैंने तेरे सारे ट्रिक्स देख लेने के बाद इस चैन को बनाया है अरुण! तू इसका कुछ नही बिगाड़ सकता।" अट्ठहास करते हुए ब्लैंक ने कहा।
"अब बस आखिरी! मकसद की खातिर…!" ब्लैंक के हाथ में थमी तलवार हवा में लहराईं। " अब मुझे रोकने वाला कोई नहीं…!"
"गलत खाली स्थान भैया! ये है ना? इसने बाहर आपके सारे आदमियों को मार दिया वो तो मैं सही समय पर यहां आ गया।" हॉल के मैन गेट से एंटर होते हुए अनि ने कहा। आशा की गर्दन उसके बांजुओ में जकड़ी हुई थी और कनपटी पर पिस्टल लगाए हुए धक्का देते हुए आगे बढ़ रहा था।
"रुक जाओ वरना वहीं भून दिए जाओगे।" ब्लैंक ने तलवार से उनकी ओर इशारा करते हुए बोला।
"अगर यही करना होता तो चुपके से आकर सबको छुड़ा भी सकता था मैं, पर मैं इसे पकड़कर लाया।" अनि के चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी।
"तुम्हें क्या चाहिए?" ब्लैंक ने सीधा सवाल किया।
"कमाल करते हैं खाली स्थान भैया! सारी दुनिया जीतने चले हो, दो चार परसेंट भी दे दोगे तो चल जायेगा।" अनि ने हँसतें हुए कहा, अरुण यह देखकर हैरान था, आशा के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, उसकी आंखों में आँसुओ की बाढ़ सी आ गयी थीं, मगर वह चुप थी जैसे इतना बड़ा सदमा उससे झेला नहीं गया।
"हाहाहाहा… इतनी मेहनत के बाद तुम्हें बस इस काम के लिए इनाम चाहिए, मौत के मुँह में आकर सौदा कर रहे हो तुम!" ब्लैंक ने हँसते हुए तल्ख लहजे में व्यंग्य किया।
"बचपन से डेयरिंग रहा हूँ! आसान काम तो हम करते ही नहीं।" अनि का लहजा बिल्कुल बदला बदला सा प्रतीत हो रहा था।
"एक काम करो, उस लड़की को गोली मार दो।" ब्लैंक ने कहा।
"बस इतनी सी बात?" अनि की उंगलियां ट्रिगर पर कसने लगी।
"एक मिनट! ये काम तुम्हें अपने नहीं मेरी बन्दूक से करना है।" अपनी बन्दूक अनि की ओर उछालते हुए ब्लैंक ने कहा। अनि कब चेहरे पर एक पल को भी भाव न बदले, उसने उस बन्दूक को कैच किया, अपनी बन्दूक नीचे रखा और ट्रिगर दबा दिया। आशा धड़ाम से फर्श पर जा गिरी।
"हाहाहा….!" ब्लैंक की हंसी पूरे हॉल में गूँजने लगी, जिसमें अनि की हंसी भी शामिल हो गयी।
क्रमशः…..
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
04-Nov-2023 06:29 PM
अच्छा भाग था। पर थोड़ा confusing भी। मतलब अनि, आशा के साथ ऐसा क्यों किया? लग तो रहा है, जैसे दोनों की कोई प्लानिंग हो, पर देखते है आगे क्या निकलता है। वैसे तो पूरा ही भाग अच्छा था, पर स्टार्टिंग कमाल थी। अनि और आशा!👌
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